भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चढ़े ले परही / ध्रुव कुमार वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:06, 15 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव कुमार वर्मा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पढ़के ओला गढ़े ले परही
करम के घोड़ा चढ़ ले परही।
कहां बोचक बे धरके पागा
मूड़ में अपन मढ़े ले परही।
एक झन मनखे, कतको बैरी
सुन्ता होके लड़े लेे परही।
जबरा के आगू करके हिम्मत
छाती तान के खड़े ले परही।
जीभ लमाके बिजरइया ला
तान के थपरा जड़े ले परही।