भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कूड़ी के गुलाब / अमित धर्मसिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:33, 20 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित धर्मसिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम !
गमले के गुलाब की तरह नहीं
कुकुरमुत्ते की तरह उगे ।
माली के फव्वारे ने
नहीं सींचीं हमारी जड़ें
हमारी जड़ों ने
पत्थर का सीना चीरकर
खोजा पानी
कुटज की तरह।

कुम्हार के हाथों ने नहीं गढ़ा
वक़्त के थपेड़ों ने सँवारा हमें।

किसी की ऊँगली पकड़ने से ज्यादा
हम अपनी ठोकरों से संभलें।

हमारी हड्डियों ने कैल्शियम
गोलियों या सिरप से नहीं
मिट्टी खाकर प्राप्त किया।

ज़मीन पर नंगे पाँव चलते
या तसले में
'करनी' की करड़-करड़ से
आज भी नहीं
किटकिटाते हमारे दाँत ।

मिट्टी में जन्मे
मिट्टी में खेले
मिट्टी खाकर पले
इसलिए मिट्टी से
गहरा रिश्ता है हमारा ।

बेशक आसमान का
इंद्रधनुष कोई हो !
ज़मीन पर-
'कूड़ी के गुलाब'
और
'गुदड़ी के लाल'
हम ही हैं ॥