भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उल्लू - 2 / अरविन्द पासवान
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:55, 22 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द पासवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक खास बात से हम
उल्लू के पक्ष में हो सकते हैं
अपनी काली, उजली, नीली, और भूरी आँखों से
हम नहीं देख पाते बहुत कुछ
दिन के प्रकाश में
वहीं पर उल्लू
देख लेता है सबकुछ
कर लेता है सच का मुआयना
अपनी रक्ताभ आँखों से
चीरकर गहन अंधकार रात की