भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वर्ण की सौगात / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:34, 11 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर }} स्वर...)
स्वर्ण की सौगात लायी भोर !
री जगो कलियो ! उठो उपहार आँचल में भरो
सज सुनहरे रूप में, मधु भाव पाटल में भरो
- भर नया उन्मेष अंगों में
- झूम लो नव-नव उमंगों में
- गंधवह शीतल तरंगों में
- प्रीति-पुलकित हर लता चितचोर !
खोल दो अंतर झरोखे द्वार वातायन सभी
अब नहीं ऐसे अँधेरे में घिरे आनन कभी
- स्वर्ण-सागर में नहाओ रे
- आभरण से तन सजाओ रे
- नव प्रभाती गीत गाओ रे
- झमझमा कर नाच ले मन-मोर !