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बनारस और बिल्ली / कुमार मंगलम

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बनारस में जिंदा ही मृत नहीं होता
जो मृत हैं वो भी मरते हैं बनारस में

बनारस एक स्थगित शहर है
जहाँ बिल्लियां दूध की ही नहीं
खून की भी प्यासी है
उनकी प्यास चिरंतन है

बनारस की बिल्लियाँ
मृदुभाषी होकर निकलती हैं शिकार पर

नजरें उठा कर ही नहीं नजरें झुका कर भी
हया से करती हैं शिकार
वहाँ एक बिल्लौटा भी चुनाव जीत कर बनता है प्रधान
और उछालता है जुमले

बनारस अपना रहस्य जाहिर नहीं होने देता
मृत्यु के देव का यह शहर मृत्यु-बोध का शहर भी है
जहां बिल्ली की तरह ही दबे पाँव प्रवेश पाती है मृत्यु भी
बनारस सिर्फ मणिकर्णिका में ही नहीं
वह सीमांचलों और खेतों में भी रहता है
जहां जवान और किसान एक साथ मरते हैं

बनारस और बिल्ली रहस्य ही है ।