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मिनिस्टर मंगरू / फणीश्वर नाथ रेणु

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'कहाँ गायब थे मंगरू?'-किसी ने चुपके से पूछा।

वे बोले- यार, गुमनामियाँ जाहिल मिनिस्टर था।

बताया काम अपने महकमे का तानकर सीना-

कि मक्खी हाँकता था सबके छोए के कनस्टर का।


सदा रखते हैं करके नोट सब प्रोग्राम मेरा भी,

कि कब सोया रहूंगा औ' कहाँ जलपान खाऊंगा।

कहाँ 'परमिट' बेचूंगा, कहाँ भाषण हमारा है,

कहाँ पर दीन-दुखियों के लिए आँसू बहाऊंगा।


'सुना है जाँच होगी मामले की?' -पूछते हैं सब

ज़रा गम्भीर होकर, मुँह बनाकर बुदबुदाता हूँ!

मुझे मालूम हैं कुछ गुर निराले दाग धोने के,

'अंहिसा लाउंड्री' में रोज़ मैं कपड़े धुलाता हूँ।


('नई दिशा' के 9 अगस्त, 1949 के अंक में प्रकाशित)