Last modified on 28 जून 2019, at 00:04

बदरा अमरित बरसावे हे / सिलसिला / रणजीत दुधु

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 28 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत दुधु |अनुवादक= |संग्रह=सिलस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे,
छटा देख-देख अम्बर के मोर मन हरसावे हे।

देख कजरिया नाच रहल हन वन में झुमझुम मोर,
ठंढ़ा-ठंढ़ा मार रहल हन फर-फर पुरवइया जोर,
डगर तलइया में सज झिंगुर दादुर गीत गावे हे,
सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे।

हरियर चुनरी पेन्ह के बनगेल ई धरती महरानी
पीउ-पीउ गा रहल पपीहरा पी के मीठा पानी
भगजोगनी भुक-भुक करके सारी रात सेज सजावे हे
सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे।

बाग-बगयचा डगर-नगर में कइसन सफर सुहानी
चंदा संग नुक्का-चोरी खेले पर्वत पर निछावर जवानी
चमचम चमचम चमक बिजुरिया जीया धड़कावे हे
सागर के कोख से लाके बदरा अमरित बरसाबे हे।