भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एकाकी दोनों (कविता) / स्नेहमयी चौधरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:35, 12 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्नेहमयी चौधरी |संग्रह=एकाकी दोनों / स्नेहमयी चौधरी }} ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चांदनी का एक टुकड़ा

कल रात जाने कब,

जाने कैसे, आ बैठा

खिड़की के पास वाली मेज़ पर सहसा।


उस अंधेरे में, अकेले में

मुझे पास पाकर मौन काँपा

थिर हुआ फिर;

मैंने दोनों हाथों पर

टेक दिया माथा।


अब तक

सर पटकने वाली

ऐंठन की व्याकुलता

बिखर कर चेहरों को

कर चुकी थी विकृत।

धीरे-धीरे सरक कर

उस प्रकाश-पुंज ने आगे बढ़

मुझको पूरा-का-पूरा छा लिया।


एकाकी दोनों ने जिस दर्द की पीड़ा सही,

उससे गलित, द्रवित हो

दोनों हो चुके थे एक।