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जड़ें / स्नेहमयी चौधरी
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अन्दर कभी समुद्र-मंथन चलता है,
कभी ज्वालामुखी फूटता है,
कभी दावाग्नि लगती है,
कभी बर्फ़ जमती है,
कभी बरसात होती है,
कभी आंधी-तूफ़ान चलता है,
सब कुछ बाहर से क्यों नहीं गुज़र जाता?
जड़ें तो न हिलतीं
- पेड़ की।