भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाट और बाज़ार / रंजना गुप्ता

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:25, 29 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रंजना गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाट और बाज़ार की
ये सँकरी सी वीथियाँ
जल रहीं इनसानियत
की खेतियाँ

झूठ और पाखण्ड की सँजीदगी
मज़हबी उन्माद की कुछ बानगी
रक्त लथपथ
गीत की हैं पँक्तियाँ

स्वाद तीखा सा कसैला सत्य का
क़त्ल युग के एक पूरे कथ्य का
मोल कौड़ी बिक
रही हैं हस्तियाँ

धर्म ईश्वर चुन दिए दीवार में
औलिया जीसस खड़े लाचार से
आस्था की उड़
रही हैं धज्जियाँ

प्रश्न भाषा जाति का रँग का नहीं
दब चुके हैं बर्फ़ में रिश्ते कही
उठ गईं
सम्वेदना की अर्थियाँ