भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दीया जइबइ पियार के / सिलसिला / रणजीत दुधु
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 30 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत दुधु |अनुवादक= |संग्रह=सिलस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सब नुकलकन के खोजवइ दीया बार के
दिल के भीतर दीया जरइवइ पियार के।
ढेरो दिन से जे बनल हकइ भीतर घाव
धीरे-धीरे करके मिटइवइ उ सोभाव
वइर ईर्ष्या मिटइवइ प्रेम से गार के
दिल के भीतर दीया जरइवइ पियार के।
विश्वास के तेल देवइ नेह के बाती
सब सुधर जइतइ जे जे हकइ कुराफाती
शांति-प्रेम से ही सुख मिलतै संसार के
दिल के भीतर दीया जरइवइ पियार के।
की नै हो सके हे जे आदमी ठान ले
पत्थर बने देवता मन से जो मान ले
मोड़ दे हके अदमी नदिया के धार के
दिल के भीतर दीया जरइवइ पियार के।
सब नुकलकन के खोजवइ दीया वार के।