Last modified on 30 जून 2019, at 23:28

आसमाँ पर कौंधती हैं बिजलियाँ / भरत दीप माथुर

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:28, 30 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भरत दीप माथुर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आसमाँ पर कौंधती हैं बिजलियाँ
दे रहा हो कोई जैसे धमकियाँ

दिल लरज़ता है हर इक चमकार पर
क्यों चढ़ाई बादलों ने त्योरियाँ

बेबसी से ताकते हैं आसमाँ
लोग जिनका है सड़क ही आशियाँ

खेत पर बैठा दुआ करता किसान
ख़ैर कर मौला ! बचा ले रोटियाँ

बिजलियों के वार से सहमा है बाग़
अनगिनत झुलसी पड़ी हैं तितलियाँ

बादलों के दिल में एक सैलाब है
रोएंगे ले-ले के लम्बी हिचकियाँ

छिन गई जबसे हमारी "दीप" छत
गिर रही हैं और ज़्यादा बिजलियाँ