Last modified on 2 जुलाई 2019, at 19:24

वे जानते थे / अदनान कफ़ील दरवेश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 2 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अदनान कफ़ील दरवेश |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आँखें रहीं घड़ियाँ
जिनमें पतझड़ सबसे अधिक बार बजा
देह रहा : जर्जर पेड़
जिसमें पीड़ाओं ने सबसे ज़्यादा घोंसले बनाए
हृदय रहा वह रस्ता
जिस पर जमा हुए
सबसे अधिक लाशों के ऊढ़े

प्रेम का निर्झर
राख बना
झड़ा
झड़ता रहा
ढँकता रहा
आत्मा को
जिनसे खिलते रहे घावों के फूल

रोना जिनके लिए प्रेम में था
सबसे बड़ा अनैतिक कर्म
उन्होंने ही कहा : थाम लो आँसू !
क्योंकि वे अच्छी तरह जानते थे
रोने से कम हो जाती है पीड़ा ।