भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वंदना (माँ शारदा की) / कुलवंत सिंह
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 3 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुलवंत सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वर दे … वर दे … वर दे।
शतदल अंक शोभित, वर दे।
मधुर मनोहर वीणा लहरी,
राग स्रोत की छटा है छहरी,
कण-कण आभा अरुण सुनहरी,
तान हृदय में परिमित गहरी।
उर में मेरे करुण भाव भर दे।
वर दे ... वर दे … वर दे…
शतदल अंक शोभित, वर दे।
तरु दल पर किसलय डोले,
पीहूं पीहूं पपीहा बोले,
मलय तरंगित ले हिंडोले,
आशीष शारदा मन पट खोले।
काव्य किलोल कर मधुरिम कर दे।
वर दे ... वर दे … वर दे…
शतदल अंक शोभित वर दे।
द्विज विस्मित कलरव विस्मृत,
सुरभि मंजरी, दिगंत विस्तृत,
नाचे मयूर, झूमे प्रकृति,
अंब वागेश्वरी संगीत निनादित।
गीतों में मेरे रस छंद ताल भर दे।
वर दे ... वर दे … वर दे ...
शतदल अंक शोभित वर दे।