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दोहे-2 / विनय मिश्र

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26.
जाते-जाते हाथ से, बनी इस तरह बात
इक दिन अपने अंत से, मैंने की शुरुआत
27.
क्या होना है ज़िन्दगी, इतना भी शालीन
समझ न आए वक्त पर, मोटा और महीन
28.
जहांँ तृप्ति की छाँह थी, वहांँ झुलसता दौर
तब की बातें और थीं, अब की बातें और
29.
डफली बजती झूठ की, यहाँ सरे बाज़ार
ठप्प हो गया आजकल, सच का कारोबार
30.
इक अनजानी प्यास को, पीकर हैं बेचैन
इस पानी में आग है, ये कहते हैं नैन
31.
तेरा मेरा है यही, सदियों का इतिहास
पानी तेरा हो गया, मेरे हिस्से प्यास
32.
हर लम्हा है खौफ़ से, सहमा इक खरगोश
शोकेसों में ज़िन्दगी, पत्थर-सी ख़ामोश
33.
मांँ की ऐनक ढूंँढ़ती, आले और दराज
शीतलपाटी जब गुमी, बाबूजी की आज
34.
आँसू लेकर आंँख में, दिल में लेकर प्रीत
वर्षों तक बुनता रहा, एक जुलाहा गीत
35.
तपते रेगिस्तान में, एक अकेला पेड़
बरसों तक लेता रहा, सूरज से मुठभेड़
36.
छोटा मत कहिए भले, छोटा हो आकार
जैसे छोटी आंँख में, सपनों का संसार
37.
यादों में तिरती रही, जाने कैसी बात
नींद बजाती वायलिन, सारी-सारी रात
38.
यूंँ ही हम कहते नहीं, यादों को अनमोल
समझा गया अकाल में, बूंँद-बूंँद का मोल
39.
कुछ ऐसे है ध्यान में, खुशियों का सामान
जैसे रहता था कभी, पनडब्बे में पान
40.
तू ऐसे चलता रहा, मुझमें अपने आप
जैसे अपने मौन में, राह चले चुपचाप
 41.
लिखती जाती डायरी, बढ़ती जाती चाह
बैठी एक शकुंतला, किसकी देखे राह
 42.
अश्वत्थामा-सा लिए, सर पर अपने घाव
हर अपराधी भोगता, दर-दर का भटकाव
 43.
मुझको ज़िन्दा कर गई, जाने किसकी याद
एक अधूरापन जिया, मैंने बरसों बाद
44.
सोचो तो ये कम नहीं, फूलों पर अहसान
ख़ुशबू के दरबार में, कांँटे हैं दरबान
45.
वह आंँखें हों या नदी, घर हो या संसार
हर प्यासी उम्मीद को, पानी की दरकार
46.
फूलों की मुस्कान हो, या कोयल का गान
दिल की ख़ुशबू जब घुले, मीठी लगे ज़ुबान
 47.
एक समंदर तक चलूँ, पकड़े तेरा हाथ
तू ठहरे तो ऐ नदी, मैं भी हो लूंँ साथ
48.
रहे रौशनी रात भर, चले चांँद का नाम
दियाबाती कर चली, कहीं टहलने शाम
49
सांँझ भजन जैसी लगे, भोर लगे नवगीत
लगे चांँदनी-सी ग़ज़ल, दोहा दिन का गीत
50.
जब तक जीवन में यहांँ, बची हुई मुस्कान
खूंँटी पर क्यों टांँग दें, जीने के सामान