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समय विश्वास का / विनय मिश्र

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डूब ही जाता
 समय विश्वास का
 हाथ में तिनका था
 पूर्वाभास का

 बेपरों की उड़ रही जो
 किंवदंती है
 कर्ण की सारी कथा में
 व्यथा कुन्ती है
 एक जीवन माह ज्यों
 मलमास का

 दोपहर तक ज़िन्दगी की शाम
 अलसाई मिली
 केक छल का काटने को
 सोच की चमकी छुरी
 झिलमिलाया जब सितारा आस का

 कौन किसके पाश में है
 शान्ति हो कि युद्ध
 तोप से दहली दिशाएंँ
 थरथराए बुद्ध
 नाज था हमको
 इसी वातास का।