Last modified on 8 जुलाई 2019, at 12:31

हाले-दिल बतलाऊँ क्या / गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:31, 8 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हाले-दिल बतलाऊँ क्या?
अपना रोना, गाऊँ क्या?

प्यार-वफा सब बातें हैं,
बातों पर लुट जाऊँ क्या?

जिसने खुद को बेच लिया,
उसको गले लगाऊँ क्या?

फैली नफ़रत की आँधी,
इसमें दीप जलाऊँ क्या?

भटका फिरता जो खुद ही,
रहबर उसे बनाऊँ क्या?

उसकी फ़ितरत में धोखा,
नैतिकता सिखलाऊँ क्या?

माना दुनिया फ़ानी है,
तो इससे उठ जाऊँ क्या?