भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह दूसरा / ओक्ताविओ पाज़ / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:32, 8 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओक्ताविओ पाज़ |अनुवादक=उज्ज्वल भ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने एक चेहरा खोजा ।
उसके पीछे
वह जीता रहा, मरा और फिर से जी उठा
बार-बार ।

आज उसका चेहरा
उस चेहरे की झुर्रियों को ढोता है ।

और
उसकी अपनी झुर्रियों का
कोई चेहरा नहीं है ।