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पिता का चश्मा / विनोद विट्ठल

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1.

जब वे नहीं हैं कह रही है बहन
पिता चश्मे से देखते ही नहीं थे महसूस भी करते थे

2.

उसे पहनना चाहता हूँ
फिर से घर देखने के लिए

3.

जीवनलाल चश्मासाज़ कहता है,
न वे गिरे, न उनका चश्मा

4.

देखता हूँ कोई पुराना चश्मा
एक फ़्रेम दिखती है और फ़िल्म याद आती है

5.

भीतर
कितने चश्मे थे पिता के

6.

बिना चश्मे
पिता की शक़्ल याद नहीं आती, कोई फ़ोटो भी नहीं

पिता ने कभी आँख नहीं दिखाई