भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्नेह भर दो / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:25, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर }} आज म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज मेरे मौन बुझते दीप में प्रिय, स्नेह भर दो !

जगमगाए वर्तिका आलोक फैले
लोक मेरा नव सुनहरा रूप ले ले
आर्द्र आनन पर अमर मुसकान खेले

मूक हत अभिशप्त जीवन, राग रंजित प्रेय वर दो !

बन्द युग-युग से हृदय का द्वार मेरा
राह भूला, तम भटकता प्यार मेरा
भग्न जीवन-बीन का हर तार मेरा

जग-जलधि में डूबते को बाँह दो, विश्वास-स्वर दो !