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माँ की अलमारी और वित्तमन्त्री जी / विनोद विट्ठल

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(बैंकर-कवि-मित्र कुमार अम्बुज, विनोद पदरज और दिनेश सिन्दल के लिए, जो मध्यवर्ग की स्मृति को एक आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक सन्दर्भ में समझेंगे)

माँ की अलमारी में 
कुछ सुपारियाँ थी जो उन्हें मिलती थीं 
पीहर से विदाई के समय शुभाशीष के रूप में 
कुछ मौली के गट्टे थे जो न जाने किन माँगलिक प्रसँगों के लिए लाए गए थे और बचे रह गए थे 
आग़ामी माँगलिक प्रसँगों के लिए

कुछ पुराने सिक्के थे
जिन्हें सम्भाले वह बेख़बर थी उनके प्रचलन से बाहर हो जाने के तथ्य से 
जैसे प्रचलन से बाहर हो जाती हैं 
कुछ नैतिकताएँ, आस्थाएँ और भरोसे

कुछ नोट भी थे 
जिन पर लगी होती थी कुमकुम की टीकी 
कुछ रसीदें थी जो अस्ल में मियादी जमा रसीदें थी 
कुछ इन्दिरा विकास पत्र थे 
कुछ किसान विकास पत्र और कुछ नेशनल सेविंग सर्टिफ़िकेट 
जिन्हें देखते मैं उदास हो जाता हूँ 
क्योंकि इन्दिरा बची नहीं है
किसानों ने आत्महत्याएँ शुरू कर दी हैं 
और नेशन को कोई सेव नहीं कर रहा है

एफ़०डी०आर० या मियादी रसीदें भी 
अब कम घरों में दिखती हैं
तीन, पाँच या दस साल की गिनती 
प्रधानमन्त्री के भाषणों के सिवा अब किसी में नहीं होती 
शादियाँ तक इतनी नहीं चलती 
तीन महीने पहले अपने मेहदी भरे हाथों की तस्वीर फ़ेसबुक पर डालने वाली लड़की 
रातोंरात अपना स्टेटस बदल कर सिंगल कर देती है 
रिश्ते अचानक अनफ़्रेण्ड हो जाते हैं 
ख़ूबियों से ज़्यादा ख़ामियाँ शेयर होती हैं 
पुराने दिनों से लोग तेज़ी से लॉगआउट कर जाते हैं

फेक आई०डी० के इस ज़माने में माँ की पुरानी मियादी रसीदें 
बच्चे, बचत, भरोसा और वक़्त पर काम आने लायक धन के बहाने 
जो रिश्ते की अनन्त उपस्थिति का दर्शन थीं 

अब कितनी बचकानी हो गई हैं 
कि माँ की मियादी रसीदों के मज़बूत प्लास्टिक के कवर को 
नेट बैंकिंग करने वाली मेरी बेटी हैरत से देखती है 
गोया ये भी कभी थे !
गोया माँ भी कभी थी !

कितना भयावह है यह 
कि माँ और उसके साथ के अपने दिन 
हम किसी चश्मदीद की तरह बच्चों को बताते हैं 
और हमें सन्देह के साथ सुना जाता है

वित्तमन्त्री जी, भाड़ में जाए जी०डी०पी० और डॉलर के मुक़ाबले हमारी हैसियत 
बस, बच्चों के सिलेबस में इतना डलवा दीजिए 
कि कभी इन्दिरा विकास पत्र, किसान विकास पत्र, नेशनल सेविंग सर्टिफ़िकेट भी हुआ करते थे 
और मियादी जमा की रसीदें 
प्लास्टिक के जोड़े में होती थीं !