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तुमसे थी गुलजार ज़िन्दगी / सुनील त्रिपाठी

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तुमसे थी गुलजार ज़िन्दगी।
बिना तुम्हारे खार ज़िन्दगी।

हल्की पुल्की थी जब तुम थे।
अब तो है बस, भार ज़िन्दगी।

सुलग रही है हौले हौले।
जैसे हुई सिगार ज़िन्दगी।

पीर प्रसव की हर लेती है।
करती जब किलकार ज़िन्दगी।

लील गया आतंकवाद का।
दानव कई हजार ज़िन्दगी।

जो कर्तव्य निभाने निकले।
है उनका अधिकार ज़िन्दगी।

किया पाँचवें दिन का वादा।
बची इधर दिन चार ज़िन्दगी।

व्यर्थ गवाँना कभी इसे मत।
मिलती नहीं उधार ज़िन्दगी।

जब तक हूँ मैं जी लो हँसकर।
कहती बारम्बार ज़िन्दगी।