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सिर्फ़ रण चाहिए / सुनील त्रिपाठी

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याचना अब नहीं सिर्फ़ रण चाहिए.
एक प्रतिघात प्रति आक्रमण चाहिए.

बैठकें खूब की शान्ति प्रस्ताव पर,
शूल ही शूल हर बार हमको मिले।
हम लगे जब गले प्रीति लेकर हृदय,
पीठ पर घाव हर बार हमको मिले।
साम की दान की नीतियों की जगह,
भेद का दण्ड का अनुकरण चाहिए.
याचना अब नहीं————————

शस्त्र संधान कर जीत मिलती सदा,
वृक्ष कदली का' फलता न काटे बिना।
भय दिखाए बिना प्रीति होती कहाँ,
नीचता नीच तजता न डाँटे बिना।
त्यागकर राम जैसी विनयशीलता,
अब परशुराम-सा आचरण चाहिए.
याचना अब नहीं———————

तालिबानी हुकूमत हिली जिस तरह,
नींव नापाक़ की भी हिला दीजिए.
गर्क कर दीजिए पोत आतंक का,
खाक़ में जैश लश्कर मिला दीजिए.
हो भले सर्जरी पार सरहद के' अब,
मूल से नष्ट हर संक्रमण चाहिए.
याचना अब नहीं—————————