Last modified on 11 जुलाई 2019, at 08:44

अनुरागी अधर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:44, 11 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

67
जोगिया नभ
अनुरागी अधर
मद छलके।
68
साँझ उतरी
खिंच गया सन्नाटा
यादें छलकीं ।
69
जड़े हैं ताले
सौ -सौ चुप्पी बनके
खड़े तनके।
70
पाल समेटे
सफर हुआ पूरा
द्वीप अजाना।
71
दूर वन में
चीख़ कलेजा चीरे
लगा तुम हो!
72
आओ यों करें-
बचे पल जितने,
जीभर जिएँ ।
73
दीप -से जलें
गहन निशा छाई
उजेरा करें।