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आज रविवार है / नाज़िम हिक़मत / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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आज रविवार है.
पहली बार वे मुझे
धूप में बाहर लेकर आए हैं ।

और ज़िन्दगी में
पहली बार मैं
यह देखकर दँग रह गया
 कि आसमान इतना दूर है
और इतना नीला
और इतना विशाल

मैं चुपचाप खड़ा रहा.
फिर इबादत करने की तरह
धरती पर बैठ गया
सफ़ेद दीवार पर पीठ टिकाकर ।

किसे परवाह उन लहरों की
जिनपर मैं डोलना चाहता हूँ
या हमारी मशक्कत की, या आज़ादी की, या मेरी पत्नी की इस वक़्त ।

धरती, सूरज और मैं...
मैं ख़ुश हूं और किस क़दर ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य