इसी अधकचरे समय में / कैलाश मनहर
इसी अधकचरे समय में से चुनने हैं
कुछ पल हंसी के
मुस्कराहट के कुछ लम्हे ढूँढ़ने हैं
जैसे उस रपटीली जगह पर
फिसलकर गिर जाने के लिए
घर आकर हंस लेना है ठहाका लगाते हुए
और समोसे का गरमागरम आलू
तालू में चिपक जाने की बात पर
कहकहा लगाते हुए बच्चों के साथ
बिता लेनी है यह ढलती शाम
इसी अधकचरे समय में से सँजो लेना है
वह क़ीमती क्षण
जब वह प्रौढ़ा
मेरे लम्बे बालों को देखकर मुस्कराई थी
और मैं स्वयँ पर ही मोहित हो गया था
उस वक़्त
जब पहला पैग पीने के बाद
मैंने बहुत मस्त अँग्रेज़ी बोली थी सगर्व
अन्धेरी रात में भी
मैं घर पहुँच गया था सही-सलामत
इसी अधकचरे समय में से
निकाल फेंकनी हैं कुछ यादें
कि नोटबन्दी के दिनों में
कितनी किल्लतें झेलीं थीं हमने सपरिवार
बिना सब्ज़ी खानी पड़ी थीं रोटियाँ
और बेरोज़गार बेटे पर
बहुत प्यार उमड़ आया था उन दिनों
पोते-पोतियों ने भी नहीं की थी
दूध और बिस्किट के लिए जिद्द
इसी अधकचरे समय में से बनाने हैं
कुछ हास्यास्पद लतीफ़े
कि छह सौ करोड़ देशवासियों द्वारा
निर्वाचित बताया था प्रधानमन्त्री ने स्वयँ को
और गुरुनानक गोरखनाथ और कबीर
को एक साथ बैठा दिया था चौपाल-चर्चा में
जबकि मौत
मुठ्ठी में लेकर पैदा होते थे हमारे जवान
इसी अधकचरे समय में से रचनी हैं
कुछ कहावतें हमें कि
षड़यन्त्रपूर्वक क़त्ल को ’लोया होना’ कहते हैं और
सरेआम हत्या को ’धर्म-संस्थापन’
विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त को
’सरकार-परिवर्तन’ कहा जाता है जबकि
सरकारी दल के अध्यक्ष द्वारा
सारे मन्त्रिमण्डल को निर्देशित करना
लोकतन्त्र का ही विकसित रूप है