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बाबा नागार्जुन के लिए / कैलाश मनहर
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जीवन में कविता की भाषा तुमसे सीखी
कविता में जीवन की आशा तुमसे सीखी
दुखित जनों के लिए दिलासा तुमसे सीखी
मौलिकता कुछ तोला-मासा तुमसे सीखी
तुमसे सीखा धन-वैभव को लात मारना
तुमसे सीखा निर्धन-जन की बात सारना
तुमसे सीखा सच्चाई पर प्राण वारना
तुमसे सीखा कठिनाई में नहीं हारना
तुमसे सीखा जन-जुड़ाव का सहज तरीक़ा
तुमसे सीखा बातचीत का साफ़ सलीका
अन्यायी से लड़ने का साहस भी तुमसे सीखा
घुम्मकड़ी से लेना अनुभव-रस भी तुमसे सीखा
ओ बाबा ! तुम इसीलिए तो याद आ रहे हो फिर मुझको
तुमने ही तो सदा सिखाया ऊँचा रखना यह सिर मुझको