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अकेलापन / साधना जोशी

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खा रहा है आज समाज को,
व्यक्ति का अकेलापन ।
छः महिने बाद मृत लाष,
मिली आलिषान घर में ।

घरों में बच्चा अकेला,
बृद्ध अकेला,
युवा अकेला,
आखिर क्यों ?

सवाल पूछता है हर मन,
जबाव देती अन्तरआत्मा ।
नहीं चाहता है व्यक्ति,
किसी से जुड़ना ।
और न बांटना चाहता है,
अपने सुख-दुःख को ।
क्योंकि विष्वास खो गया है,
मानव का मानव से ।

भाव जगत विकसित नहीं करते हैं,
माँ-बाप भी बच्चों का,
और अपनी बनावटी दुनियां में,
सांस ले रहा है,
आज का सभ्य समाज ।
किसी के प्रति,
कर्तव्य न निभाना चाहता है ।

जिम्मेदारी से पल्लू झाड़ते हैं,
हर रिस्ते ।
स्वार्थ, संषय, लालच,
लोभ, अर्ममण्यता के कारण,
कटता है वयक्ति समाज से,
और इसीलिए मौत भी,
सरल लगने लगती है मन को ।


इसिलिए दूर रखो,
दिखावे की भावना को ।
हम अपना सम्मान खुद करें,
हमारे पास जो है,
उसका मुल्य समझें ।
प्रेम-सौहार्द सबके प्रति रखें,
समझ भले बूरें की,
सावधानी से कर्म क्षेत्र में कदम रखें ।
समाज में स्नेह,
देने और लेने का प्रयास करें ।