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गोरी के गाँव / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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लहरावे धान सगर, मँहकावे राह
नदिया है थाह कमी कहियो अथाह,
बहे धीरे-धीरे हे पुरबा बयार,
पहिले अषाढ़ में वर्षा उलार,
डोली में गोरी हे दुलके कहार,
जल्दी से चल भैया होतौ अन्हार,
नदिया कछार कभी धूप कभी छाँव
बड़ी दूर रसल-बसल गोरी के गाँव
मकई सुगंध कभी धनियाँ के गंध
कजै रामकथा कजै भागवत प्रबंध,
कूके कोइलिया वासंती हे राग,
कभी बोले कीर कभी उचरे हे काग,
बाजे तोर गाँव में कभी चमर ढोल,
सुनलों मिसरियासन बोल अनमोल,
पैदल पगडंडी पर तेज चलल पाँव
बड़ी दूर रसल-बसल गोरी के गाँव।
कभी काँचनार खिले कभी अमलतास
कभी गाँव दूर लगे कभी लगल पाास,
तुलसी के पौधा हे रोपल बथान,
ब्रह्मदेवती पास में देवी गुण-गान
गेहूँ लहराल देख हर्षित किसान,
दुन्नू दू देह मगर एक हल प्राण,
नदी भरल सावन में चढ़ल चलल नाव
बड़ी दूर रसल-बसल गोरी के गाँव।
गोरी के देखलों हल सुन्दरता मूल,
जा हल जजा जजा ओजा खिल जाहल फूल
सुन्दरता गोरी के देखके लजाय,
अद्भुत सुन्दरता हे कहे आय-माय,
शुचिता, सरलता शील वाणी मिठास,
घर में फैलल ओकरा ऐते उजास,
कण-कण हल जानल पहचानल हर ठाँव,
बड़ी दूर रसल बसल गोरी के गाँव।
जहाँ-तहाँ लगल बट-पीपल हे पास,
आते आसिन सब फूले हे कास,
गूँजे हे शहनाई बेटी विवाह,
फैले हे घर-बाहर भारी उछाह,
कजै खपडै़ल हे पुराना मकान,
इक्क्ा-दुक्का खिचड़ी-फरोसके दुकान,
आवे के पहले काग करे काँव-काँव,
बड़ी दूर रसल बसल गोरी के गाँव।
गोरी के अँखिया में उमड़ल हे नेह,
सावन भादों में जैसे बरसे हे मेह,
स्वर्णा भा चमके हे गोरी के देह,
स्वर्ग से बढ़को हे गोरी के गेह,
कैलक सब काम नय कहियो आराम,
गाँव पर गाँव तक गोरी के नाम
हारल ऊ कहियो नय कजै कोय दाँव
बड़ी दूर रसल बसल गोरी के गाँव।