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फगुनियाँ वसंत / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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आम मंजराल हें, गेहूँ गदराल हें
सेमल के देखलों दूरे से उमताल हें

पेड़ पात हरियर हे उमग रहल नरियर हे
खेत खलिहाल में वसंत छितराल हे

सहजन भी फूटल हे डार झुक टूटल हे
देखलों अजान मंजराल खूब जूटल हे
शीशम भी चढ़ले हे भाव ओकर बढ़ल हे
पांकड़ के टूसा नवपल्लव ले उठल हे

धरती के साड़ी है सरसों के पारी है,
फूट रहल कुंकुम केसर के कियारी है
सगर सृष्टि मातल है मन्मथ भी बातल है
प्रेम के पुजारी सब मिलल नव गियारी है

टेसू सब फूल रहल काँचनार झूल रहल
भौंरा सब जहाँ तहाँ राहे में भूल रहल
यौवन से भरल पुरल पौधा सब पसरल हे
नदिया के किनारे से दूर तलक ससरलहे।

पछिया भी सिहकल हे बाग सब मँहकलहे
फागुन के आग से सेमल सब लहकल हे
बनल हे गुलाब गाल सुना रहल नदी ताल
मछुआरा प्रेमलगी फेंक रहल नया जाल

चिरई चुरमुनी सब जागल हे
सीत घाम दुन्नू तो भागल हे
सगरो के धरती अनुरागल हे
बसंती बयार बनल पागल हे

काली कोइलिया के मीठ-मीठ बोली हे
बोली से मार रहल तीर सन गोली हे
कामदेव खोल देलक नगर डगर होली हे
फागुन में मचल रहल घर-घर में होली है।