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गौतम-तिरिया (कविता) / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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नाम अहिल्या ब्रह्मा के बेटी हल बड़ी दुलारी
सगर स्वर्ग में ओकरे सुंदरता के चर्चा भारी
अभी जवानी के देहरी पर धैलक हल ऊ पाँव
इन्नर ओकरा पावे ले तब लगादेलक सब दाँव
ब्रह्मा से कहलन इन्नर हमरा ई कन्या चाही
एकर रूप के देख बनल ही हमतो अब तक राही
हम सौतिन के पास अहिल्या के न यकरम बिआह
एकरा लागी तो इन्नर नय हमरा करो तबाह
लौटो अप्पन राज ब्रह्मपुर के छोड़ों तों अखनै
लौटल इन्नर स्वर्ग लोक में सुन सब बातके तखनै
और विधाता सोचो लगला केकरा संग करी हम
केकरा सेवा में अप्पन बेटी के कहाँ धरी हम
ज्ञान ध्यान में रत गौतम जी जंगल में सबसे पहला
दर्शन चिंतन मनन करम के धरम हला ऊ जानैत
हला ब्रह्मचारी ब्रह्मा के ऊ भी रहला मानैत
अप्पन बेटी के लेको ब्रह्मा आसरम में ऐला
की कारण से तों ब्रह्मा बेटी के हा पहँचैला
ब्रह्मा कहलन गौतम जी एकरा चाही तोर छाँही
सेवा तोर करत ई सब दिन तोरा सौंप हम जाही
गौतम के सेवा तन-मन से खूब अहिल्या कैलक
गौतम के ऊ कृपादृष्टि के धीरे-धीरे पैलक
तभी एकदिन ब्रह्मा जी ऐलन देखेले बेटी
बड़ी दीन से बनल रहल गौतम जी के जे चेटी
गौतम जी ब्रह्मा जी के कैलन आदर स्वागत
ऐला काहे ले बोलो तों बड़भागी अभ्यागत
गौतम जी बेटी ई हम्मर रहल बनल हें क्वांरी
एक ब्याह के चिन्ता हमरा ब्याप रहल हें भारी
हे जवान बेटी जे घर में नींद नऊ घर आवै
रोज-रोज बेटी विवाह के चिन्ता खूब सतावै
बेटी तो पर घर के धन है बेटी चिरई प्यारी
उड़ जाहे घर-घाट छोड़को खाली करको क्यारी
बर खोजै में सभे बापके पाँव बड़ी घिस जाहै
गाँव नगर में खोजैत खोजैत बाप सभे पिस जाहै
बाप बड़ी है दीनहीन बेटी के ई धरती पर
मिलै न ओकरा राह कहैं ऊ चलल बहुत परती पर
बर न मिलै बेटी पर चढ़ जाहै बड़ अपयश भारी
बेटी तो बेटी है चाहे गोरी हो या कारी
बेटी होते डरल सभी बेटा में बड़ी उछाह
बेटी हे जे घर में ज्यादा ऊ घर बनल तबाह
हमर अहिल्या बेटी के सेवा के फल्तों दा अब
तोर तपस्या के फल सन पहुँचल आसरम में ई जब
बरन करो तों आय अहिल्या के तिरिया तों जानो
कैला जपतप बहुत गृहस्थी के अप्पन तों तानो
गौतम के हाथ में अहिल्या के धर देलन हाथ
गौतम और अहिल्या के कर देलन ब्रह्मा साथ

चलल पवन उल्लसित नदी में धार बहल पुरजोर
सजल होल लौटते समय ब्रह्म अँखिया के कोर

गौतम और अहिल्या मिलला पुष्पित होल वसंत
गौतम रहल निहार देरतक सुरभित होल दिगंत

शहर गाँव से दूर बनल हल आसरम सुन्नर
जंगल मंे आसरम हल कुटिया में हल किन्नर
औरत हल की सुन्नरता के दीप बरल हल
इहे अहिल्या गौतम के घरनी हल खलमल
हँसल अहिल्या जंगल में झरना झर गेलै
मुस्की देलक तो बांझो पेड़ो फर गेलै
गठल देह गौतम के तपके खूब धूप हल
इेहे अहिल्या के अजगुत सन नया रूप हल
केस झारलक तो अन्हार हो जाहल सगरो
आँख खुलल तो रातों में दिख जाहल डगरो
दिन में सूर्य बरल हल जंगल के कुटिया में धूप
पसरल हल सगरो रतिया में चान नियर ऊ रूप
तरह-तरह के फूल खिललहल जंगल लतावितान हल
समे तरह के पच्छी भी सब वहाँ करैत नव गान हल
नदी बहो हल तनिक दूर पर कलकल छलछल धार हल
गौतम जी के ई कुटिया जंगल में सबके हार हाल
गौतम जी के तप के फलसन दिइखलन गौतमनारी
सोभ रहल तिरिया के तन में झलमल सुन्नर साड़ी
एक समय गौतम जी मन में कैलका बहुत विचार
ऋषि जीवन में यज्ञ कर्म तो समे कार्य के सार
जीवन भी तो यज्ञ यज्ञ के कैलका ऊ तैयारी
उठा पटक दौड़ा दौड़ा हे सगरो मारा मारी
ऋषि के साथ देवता सब भी आमंत्रित हो ऐला
सजा रहल हल सगर अहिल्या भर द्वार पर घैला
यज्ञ धूम से जंगल के सब भूमि बनल हल शुद्ध
विदाहोला सब देव इन्द्र जी के मन में हल युद्ध
रुकल देवतन के राजा इन्नर सब सुधबुध खोलक
देखलक गौतम के तिरिया के रूप बड़ा अनमोलक
ग्यान ध्यान में रत गौतम जी खूब रहोहला
कभी अहिल्या के गौतम जी कुछ न कहोहल
योग भोग के खूब समन्वित रूप हला ऊ
जंगल के आसरम में चर्चित धूप हला ऊ
स्वर्ग धरा के रूप देखके चका चौंध हे
देख रहल हे कैसन बिजुरी रहल कौंध हे
बरल अगिन सन जगमग जगमग देह हे
इहे अहिल्या के गौतम से नेह हे
कैसूँ मिले अहिल्या कैलक मन के पक्का
देख अहिल्या के हल इन्नर हक्का-बक्का
दिनभर जैसे-तैसे इन्नर सोचैत रहलक
मनके बात कहैं केकरो से ऊ नै कहलक
जैसे-तैसे जगल रहल जब रात होल
घात लगाके बैठल पेन्हलक काम खोल
धक् धक् करे करेजा इन्नर राजके
काम फौज ले चलल अस्त्र सब साजके
काम वासन कीच बनेहे जब जीवन में
कामातुर सब लोक लाज भूलो हे क्षण में
दिन के काम समेट रात के संध्या करको
गौतम जी के खिलापिलाको अंगना भरको
पति पतनी जब थककऽ सुतला कुटिया भीतर
इन्नर के मन हो रहलन हल तीतर-भीतर
उकसैलक कौआ के खोंता रात में
खड़कल इन्नर बदन सटल जब पात में
काँव-काँव कौआ कैलक अधरात में
इन्नर बैठल रहल रात भर घात में
नींद टुटल गौतम जी के कौआ के सुनके
प्रात जानके चलला ऊ गंगा के धुनके
मन में हरिके ध्यान चलल जाहल पगडंडी
कौआ के बोली तो हल नहाय के झंडी
गौतम जी चलल अब अप्पन कुटी खोलके
कुटी बंद कर चलल अहिल्या तनिक बोलके
रात अभी आधे बीतल हल तन मन भी अलसाल हल
कुटियापर दस्तक देते हल इन्नर काम के ब्याल हल
खुलल फेर कुटिया इन्नर गौतम बन ऐला
काम वृद्ध इन्नर बन गेलन नइका छैला
गौतम नारी पुछलनघुरतों काहे ऐला
बिचे राह से लौट गेलातों कहाँ हे रै ला
एक रात में कामकृत्य के तों काहे दोहराबोहा
जहाँ से चलला फेर लौटके वहैं पर काहे आवोहा
गौतम बनल इन्द्र तब कहलन ई तपके फल पावन
यज्ञ कार्य के बाद कार्य ई दोहरा बनल सुहावन
कैलन काम किलोल अहिल्या ऐसन नारी
समझ न सकलन इन्नर के छल-बल बेचारी
काम अगिन में अपने जललन और जलैलन
इन्नर जी सब दिन कामे के गीते गैलन
काम और दाम के सभे सुख चाहे गद्दीवाला
भरमावे सबके जंगल मंे करके गड़बड़ी झाला
इन्नर राजा काम काज में जीपातर हे
सबके दे उपदेश की बैगन बड़ बातर हे
रात करोहल सांय-सांय दखिनाहा नै हल
मिसरीसन मधुवात प्रात के कहाँ चलोहल
चिड़िया कचबचिया के कजै निशान न देखलों
दूर अभी तो अखने सुर्ख बिहान न देखलों
उलटे पाँव लौटला गौतम जी आसरम के ओर
निकल रहल हल काम कर्म करके घर से तब चोर
कुटीद्वार पर भेंटल इन्नर हड़बड़ाल हल भारी
देखलक गौतम के आवैत तो धड़फड़ाल बेविचारी
चाह रहलहल इन्नर जल्दी कुटी छोड़के जायके
ध्यान लगाके देखलन गौतम लगला खुब गरमाय ले
अरे इ तो इन्नर नुक छिपके आल हमर कुटिया में
सब कुछ नाश इहे कइलक हें मिला देलक मटिया में
जैसन कैला तैसन फल तोरा हम देही हाली
भग से सौंसे देह अभी से भरतो तोर कुचाली
काम लगी तो उतरगेला धरती पर बन बड़ बौड़ाहा
काम यज्ञ है काम सृष्टि के चलवे वाली तरणी
काम शांति ले ब्याह करो घर में ले आवो घरनी
काम चाम नय काम राम है काम कटार दुधारी
बनल कामके रहला इन्नर तों सबदिन व्यापारी
काम कला हे काम दीप हे कामे मनके राग
मगर काम के खेलैत रहला इन्नर सब दिन फाग
अधिक काम यात्रा तो सबके मरण पास ले जाहे
काम धर्म हे काम कर्म हे काम स्वर्ग के राहे
लेकिन काम लोभ जब होहे बन जाहे ऊ झारी
काम कृत्य कैसे दोसर से जे हे बनल अनाड़ी
काम धरम हे, काम प्यार है काम सार है मार हे
लेकिन देखलों अधिक काम से कतना बनल बिमार हे
आत्मा के ई मधुर राग हे प्रेम बनल अविराम हे
पुष्प गंध ई अगरू धूम से जगमग सुन्नर धाम हे
मरयादा काम के परिधि हे शील एकर हे बांध
काम कृत्य एकरा से हँटको देहे बड़ी सड़ांध
काम जोत है, काम कोटि है काम अगिन हे तातल
इहे काम ले अग-जग में नर देव रहल हे मातल
सब्ज बाग हे अमर राग हे चढ़ल शीश पर फूल
मगर काम वासना बनल जब सब हो जाहे धूल
काम धरा पर बड़ी रतन है बनल जनम के रूप
लेकिन काम पियासा केवल तोराले अंधा कूप।
घरनी के नै देखला सबदिन काम ककहरा सिखला
राजकाज सब भूलभाल के गीत नाच तों देखला
अपना से संतोष हो लो नै हीवैत रहला नारी
जजा देखला सुन्नर और पट से करो घिढारी
ई चिजोर तोहर सौसे देहे में होतो भारी
सब दिन मिलके औरत सबसे सुनते रहबा गारी
सुनके सन्न रहल इन्नर तब काठ मारगेल ओकरा
बनल उहे झंखाड़ बुढउ तब जेहल छैला छोकरा
भगमय देह छिपाके कैसे इन्नर अब जैताहल
इहे वसंती समय बयारल सुरभित जब चैताहल
तभी देखके गौतम अप्पन घरनी के सबहाल
औरत के कहलन ई सच्चे माया के जंजाल
गौतम के आहट बोले के भाव भंगिमा भूलल
इन्नर के संगत में ओकरे मन संग रहला झूलल
पता तोरा नय लगलो कि गौतम ई कोय है दोसर
पतिव्रता तो सांस गमे हे आलहें केकर ओसर
पतिव्रता के धरम करम तों कैसे देला छोड़
इन्द्र हमर आसरम में आको नियम देलक सब तोड़
नारी केवल कामकृत्य के हे न जगत में साधन
नारी के होवे के चाही सगरो अब आराधन
बड़ सुख देला सुनो अहिल्या तों गुनवन्ती नारी
लेकिन अखने जे कुछ कैला ऊ हो कारिखकारी
करम धरम साधना किनारे सबदिन तोंही जीला
लेकिन आ अचानक कैसे पड़ला जल्दी ढीला
तोरा छोड़ैसे होबत अबतो बड़ हमरा दुख भारी
लेकिन तोरा रखला पर सब दिन सुनवै हम गारी
जड़ हो गेला इन्नर जब तोरा संगे हो गेलो
पर मरदाना देख चेतना तोर कहाँ की भेलो
बोलो बोलो पतिवरता के कहाँ त्याग तों देला
औरत से काहे तों बनगेली बिलकुले ढेला
तों पत्थर बनजा जैसन पत्थर बनला हल अखने
रहला इन्नर के संगत में जड़ बनके तों जखने
गोंग अहिल्या बधिर बनल पत्थर जड़सन हो गेल
जगमग जगमग रूप काठ सन निस्चेतन बस भेल
सांय-सांय तब चलल पवन जंगल देलक झकझोर
पहुँचल तखनै ऊ जंगल में अभिशापित हल भोर
बोलल इन्नर छमाकरो उद्धार हमर कब होत
छिपल रहम कंदराबी देखम कैसे फिर जोत
निर्घिन कैलों काम मिलल एकर फल हमरा भारी
मिलता कहिया के हमरा तारे ले अब अवतारी
इन्द्र सोच में पड़ल आर मनमें कैलक पछतावा
काम बन गेलन ओकरालागी लहकल दहकल तावा
गौतम कहलन त्रेता में जब राम तोड़तन धनुही
भग तोहर हो जात आँख तोरे शरीर में तबही
तब हजार आँख से दखिहा राम सिया के ब्याह
तोरा देखके सब देवता के होतै बड़ी उछाह
इन्द्र साथ हल चन्द्र देखते ई सब काम अघोरी
साथ इन्द्र के देलक और ऋषि के घर कैलक चोरी
मृगछाला के फेंक मारलन गौतम बढ़को आगे
दाग लगल चाँद के देह में अब ऊ कैसे भागे
जैसन कैलक तुरते ऊ भी अब वैसन फल पैलक
ई कलंक कब दूरहोत हमरा कब मिलतै ज्ञान
त्रेता में जब राम जन्म होता ई ला तों जान

लगा टकटकी देखिहा उनका ध्यान सगर से मोड़
राम समझता उहे समय में तोरा तब चित चोर
अपन नामके आगे में तब लगा देता ऊ चन्द्र
मिटत कलंक तोर तखनै तांे सुनो चन्द्रमा इन्द्र
पत्थर बनल अहिल्या के गौतम पसीजके कहलन
अबतक मुनि ई जड़ चेतन पर दया करैत जे रहलन
मुनि के साथ धनुष तोड़ैले राम लखन जब जैतन
जंगल में देखको तोरा जब उनकर मन भर ऐतन
तभी तोर उद्धार होत तबतक तों पत्थर हो जा
बनजा जड़ पत्थर जल्दी से ई धरती पर सो जा
दबल पापसे चँपल शाप से नारी हो गेल पत्थर
पत्थर जैसन कड़र गिरल ऊ जे नारी हल सुत्थर
घोर घाम आतप वरसा में रोज अहिल्या तपलक

जड़ बन देखैत रहल राह रामके रोजदिन अपलक
छोड़ अहिल्या अप्पन आसरम के गौतम जी चलल
मन ही मन अप्पन तिरिया ले भीतर में खुब गलला
आसरम होल उजाड़ अहिल्या की कैलक ई काम
गलत काम कैलक इन्नर गौतम तिरिया बदनाम
पुरुष बहुत बर्बर हे ऊ तो गलती रोज करो हे
जहाँ-तहाँ जेकरा तेकरा संग यहाँ वहाँ विचरो हे
मन चंचल ओकरा है ऊ तो हाथ केस पकड़ो है
सीना तान चलो है सगरो सगरो ऊ अकड़ो है
औरत के छोटकी गलती भी बन जाहै लगफांसी
पुरुष निकल जाहै सबदिन देकरको झांसा झांसी
शाप अहिल्या सुनलक गौतम के जड़बत हो गेल
बन परित्यक्ता दुख भोगलक मरद के ऐसन खेल
डर समाज के पड़ल रहल यौवन में आल बुढारी
इन्द्रराज के दोष बड़ी कैलक रात में चुहारी
सुबह शाम कब होल रात सन दिन ओकरा ले हो गेल
कौन पाप कैलक रमनी कौन कालिमा धोगेल
मन चिन्ता में तन पीड़ा में बसल रहल दिन रात
कब ऐता उद्धार करैले ऊ रघुवंशी प्रात,
औरत माँ, भगिनी, वनिता सृष्टि के उहे कहानी
औरत के कोख से निकलला बड़का ग्यानी ध्यानी
और गुनके खान मरद के दुर्गुण से ऊ घायल
रहल सदा बेहोश मरद सुन औरत पगके पायल
ऊ औरत के जे मारे ढाढै ओकरा की कहिऐ
जीऐत ऊ मरदाना के देखैत कैसे हम रहिऐ
औरत तो बनके वसंत चाँद के चाँदनी रानी
औरत झिर-झिर पवन निर्झरी के भी उहे कहानी
औरत दिन के धूप और पावस के उन्मादी घन
औरत तो मर्द के जिन्दगी के हर क्षण के धड़कन
औरत बरहमा विषुन और शंकर के सदा नचैलक
औरत शंभु निशुंभ और रावण के पकड़ नथैलक
उषा सुन्नरी निशा किन्नरी औरत फुटल विहान
औरत पर जी रहल देखलो ब्याकुल बनल जहान
कवि के गीत चित्र के छवि हे औरत मुख के पानी
और गंगा औरत जमुना सबकुछ इहे जननी
औरत घर के सांध्यदीप हे सूरज के हे लाली
औरत बनल रहल हें सब दिन मगर चाय के प्याली
काँचनार टेसू फूलल जब औरत होल जवान
बदल गेल शिवरूप सहज गौराके कैलन ध्यान
औरत उहे रहल लोटल परती बंजर धरती पर
ऐता कभी उधार करैले राम यहाँ परती पर
होल सुबह पर चिरई चुरमुन्नी न वहाँ कोय बोलल
भागल तुरत वसंत वहाँ से धरती तनिक न डोलल
धरती होल उदास अनुर्वर संतप्ता बड़ भारी
ओजा न बादर बरसल कहियो रहल बनल अंधियारी
मुनि के साथ रामजी भाई लखन साथ जा रहलन
काहे ई बीरान भूमि हे पुछला पर मुनि कहलन
पवन यहाँ से रूठल है हे इन्द्रकोप भी भारी
हरियल हल बन निर्झर सुन्दर अब उखड़ल सब झारी
लता गुल्म सूखल हें आसरम भी हे बनल उदास
सूख रहल एक-एक कर छोटकी बड़की सब घास
बड़ी उदासी फैल रहल हे है बड़का सन्नाटा
सगर राह में बिछल देखलों कुसहा बड़का काँटा
नदी और तालाब सुखल हे सूख गेल सब पेड़
हिरनी यहाँ कुलॉच न भरलक तहिए से ऊ भागल
धरती सुत्तल रहल आयतक कहियो तनिक न जागल
धरती रहल बनल परती सगरो हो गेलै दरार
नारी पड़ल विपत में तखनै से हे बनल अन्हार
कभी इहाँ पर गौतम के आसरम हल सुन्नर सुत्थर
देख आ गेलो यह आगे में पड़ल सामने पत्थर
गौतम तिरिया इहे अहिल्या के तप कैलक नाश
इहे इन्द्र के करनी से रूठल भागल मधुमास
औरत पर अन्याय होल इन्द्र के तरफ से भारी
शाप देवे में गौतम रहला तब भी बड़ी अगाड़ी
गौतम तिरिया नारी के सब भार रहले हें सहते
पत्थर जड़ निर्जीव बनल हे गुमसुम सबकुछ कहते
राम एकर उद्धार करो तों अप्पन चरण सटाके
औरत के सम्मान आय दा शंका सभी मिटा के।
औरत के उद्धार करेला तों लेला अवतार
बहुत दीन से खा रहलें हंे औरत बड़का मार
मर्द इन्द्र जैसन फेरा में औरत बनल शिकार
युग-युग से नारी के लज्जा आप रहल झख मार
पैर तोर धुरियाल राम तों अब स्पर्श करऽ तों
अभी अहिल्या के मनही मन कैलन तभी प्रणाम
गौतम के तिरिया के देलन राम बड़ी सम्मान
जड़वत् पड़ल अहिल्या के तब अप्पन धैलन पाँव
जभी छुऐलन दीखो लगलन सजल संभारल गाँव
खड़ी होल सामने तपस्या के अपरूप अहिल्या
बनल मानवी फिर से निखरल देखलों धूप अहिल्या
पत्थरवत् जड़ बनल पसानी के ऊ देलन चेतन
वसल वहाँ पर नयका आसरम नयका बनल निकेतन
संतप्ता के मिलल वहाँ पर जैसन शुभ स्पर्श
रोम रोम से फुट पड़ल ओकरा में अजगुत हर्ष
गौतम तिरिया देख राम के श्याम रूप मे ठाढे़
रोआँ-रोआँ खड़ा होल उबरल विपत्ति हल गाढ़े
गुमसुम हल लाज से गड़लहल सहमलहल सिकुड़लहल
अभी तलक पापके भार से ऊ भारी जकड़ल हल
पाके प्रभु के पाँव परस नारी हो गेल निहाल
छूट गेल पिछुआड़े में दुर्दिन के सब जंजाल
नारी के ले नया रूप निखरल गौतम के तिरिया
बड़ी भार ढोलक तप कैलक पारबती सन हिरिया
छलका राम जभे गौतम तिरिया के तब ऊ जागल
रहल निहारैत देरतलक राम के रूप अनुरागल
कुसुमित जंगल में वसंत फिर तखनै उतरल हाली
पत्थर घटा फाड़के निकलल चाँद बजल करताली
हिरनी देलक कुलांच कोइलिया, बोलल मिठुआ बोल
चिरई चुरमुन्नी सब अप्पन चोंच रहल हल खोल
सूखल नदी में उमड़ल तखनै नेहके बड़ जलधारा
गौतम तिरिया ऊब डूबके लागल अभी किनारा
हरा होल सब घास पेड़ पौधा में पल्लव फूटल
राम जहाँ चल गेला धरा के पाप ताप सब छूटल
राम पहुँचला जब जंगल में बांझ पेड़ फर गेल
ठूठो में हाली हाली तब नयका टूसा भेल
घिरल घटा तब आसमान से बरसल तखनै मेंह
पत्थर सन हल पड़ल अहिल्या पैलक नइकी देह
पति के शाप बनल बरदान अहिल्या के की चाही
बड़ी भोगलक शापकाल में नारी इहे तबाही
मगर अहिल्या गौतम जी पर कभी क्रोध नय कैलक
एक आस विसवास राम पर सब दिन मन में धैलक
उहे आसथा के बल पर सामने राम आगेला
अब जीवन में की रक्खल हे पाई रत्ती धेला
पड़प राम के नजर अहिल्या हो गेल बड़ी नेहाल
अब तक तो मर्द के कृत से हल ऊ बड़ी बेहाल
राम रूप देखके अहिल्या उहे पाँव पर लोटल
जेकर कारण ई पत्थर सन देह आय फिर छूटल
नयका रूप देह नयकी पाकर के गौतम नारी
तरल रामके चरण कमलसे बीतल विपदा भारी
क्रोध उपेक्षा और शापके कैलक ऊ स्वीकार
तपके रूप बनल पावन सहलक ऊ सबके मार
तोर नाम बस पाँच सती औरत में ऊपर रहतै
सब दिन तोर अमरता के झंडा अब बड़ी फहरतै
हिरनी सन आँख में लोर भर करको रमनी बोलल
जड़ जे अखने तक आगे रामके देखके डोलल
धन्य अभी हम नाथ अभी हमरा अब नय कुछ चाही
चलते रहतै भारत में रामके सदा बहबाड़ी
राम हो गेला विदा जुदा पा गेल अहिल्या मान
अभी तलक चल रहल देश में ई तिरिया गुणगान
गौतम-तिरिया पैलक नयका जीवन नयका पानी
धुलल धूप सन निखरल तिरिया सड़िया पेन्हलक धानी
बरल जोत तप करते-करते बनल किरिनियाँ भोर के
सब दिन रहल इहे आसरम के तिरिया बड़ी अगोर के
आय उहे तिरिया के दिन फिर फिरल भाग्य जंगल के
काम अहिल्या शुरू कर देलक सबके शुभ मंगल के
राक्षस के मारल कलंकिता जे हल दुर्बल कनियाँ
अप्पन घर से बाहर होल रहल जे बस दुख धनियाँ
पुरुष बनल हल अप्पन कनियाँ ले जे सब निरगुनियाँ
जेकरा कहैं पनाह न मिललै कतना झुनियाँ मुनियाँ
बिन ब्याहल ब्याहल कन्या के जे पर पुरुष दबैलक
जहाँ-तहाँ वासना कीचमें ओकरा कजै फँसैलक
ऊ औरत गिरगेल सभे ओकरा से बनल उदास
तब समाज में कभी न जेकरा मिललै सुन्नर वास
ऊ सब औरत के गौतम तिरिया आसरम मंे लैलक
जे जतना जादे मरदन से काय-यातना पैलक
कहलन सबसे तों सब अपना के समझो नै छोटा
पुरुष करम से कभी न अपना के तों मानो खोटा
उठो उठावो सब तिरियाके बनो सभे तों हिरिया
छोड़ो काम, करम से नाता जोड़ो देही किरिया
बनल अहिल्या के आसरम में नयका त्रिया निकेतन
औरत पढ़े लिखे में लगलन सब कुछ हल बिन वेतन
सब संगीत, सिलाई और घरबारी सिखलक खूब
गेल अहिल्या के आसरम में शिक्षा में सब डूब
कइलक खूब कहानी कविता रचलक नइका छन्द
नारी के कलंक के ऊ दिन टूट गेल सब बंध
सब में ढाल देलक अपनाके सबके कैलक काम
बड़ी दूर तक फैलल इनकर सेवा के बड़नाम
गौतम जी से बढ़को कैलक काम अहिल्या बड़का
औरत सबके जीए ले देलक अनेक ऊ तड़का
अर्पित कैने रहल अहिल्या अप्पन तनमन सब धन
कतना औरत के देलक आसरम ई नयका जीवन
कामकाज से निकलल जे ऊ सुन्नर कमल खिलल हल
इहे आसरम में तो कतना रहल बड़ी निर्मल जल
दूर देश के पशु पक्षी के मिलल बड़ी आराम
नया क्षेत्र बन गेल अहिल्या के ई चर्चित धाम
चलल जने ऊ धन्य बनल धरती के हर्षित कण-कण
जियल अहिल्या और देलक सबके आसरम में जीवन
गेल अहिला तो सब ओकर नाम धरे हे अप्पन
इहे अहिल्या के जीवन नारी जीवन के दर्पण।