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रंग बदलेगा गगन! / महेन्द्र भटनागर

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अब नहीं छाया रहेगा
शीश पर काला कफ़न !
कुछ पलों में रंग बदलेगा गगन !

दे रहा संकेत मलयानिल
थिरक !
हर डाल पर
हर पात पर
नव-जागरण आभास
मोड़ लेता विश्व का इतिहास।
गत
भयावह तम भरा पथ
पीर बोझिल शोक युग,
शुभ आगमन आलोक युग !

स्वप्निल धरा गतिमान,
निसृत लोक में नव गान
गुंजित हर दिशा
बीती निशा, बीती निशा !

चिर-प्रतीक्षित
स्वर्ण सज्जित प्रात
आया द्वार
लेकर हर हृदय को
हर्ष का, उत्साह का उपहार !

मानव लोक से अब दूर होगा
वेदना का तम गहन,
भारी उदासी से दबा वातावरण !
नव रंग बदलेगा गगन !