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अंक में आकाश भरने के लिए / राजेन्द्र वर्मा
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अंक में आकाश भरने के लिए,
उड़ चले हैं हम बिखरने के लिए ।
कौन जाने, क्या-से-क्या होंगे अभी,
पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए !
अब तो कौरव और पाण्डव एक हैं,
द्रौपदी का चीर हरने के लिए ।
धर्म की चटनी चखेंगे फिर कभी,
रोटियाँ दो पेट भरने के लिए ।
जाप मृत्युंजय का करता है वही,
जो है जीवित मात्र मरने के लिए ।