एक ठगे गए मृतक का बयान / उदय प्रकाश
जो बेतरह ठगा गया है, ठग उसे देख कर हंसे जा रहे हैं
जो ठग नहीं भी हैं, वे भी हंस रहे हैं
लेकिन जो ठगा गया है, वह प्रयत्न करता है हंसने का
और आख़िरकार हंसता है वह भी एक अजब तरीके से
उसकी हंसी में कोई ज़माना है जहाँ वह लाचार है
जिसे मार दिया गया है वह मरने के बाद बेचैनी से अपना चश्मा ढूँढ़ रहा है
उसे वे चेहरे ठीक से नहीं दिखे थे मरने के पहले
जो उसकी हत्या में शामिल थे
कुछ किताबें वह मरने के बाद भी पढ़ना चाहता है
जो मरने के ठीक पहले मुश्किल से ख़रीदी गईं थीं तमाम कटौतियों के बाद
वह मरने के पहले कोई सट्टा लगा आया था
अब वह जीत गया है
लेकिन वह जीत उधर है जिधर जीवन है जिसे वह खो चुका है
एक सटोरिया हंस रहा है
बहुत से सटोरिये हंस रहे हैं
उन्हीं की हुकूमत है वहाँ, जहाँ वह मरने से पहले रहता था
अरे भई, मैं मर चुका हूँ
तुम लोग बेकार मेहनत कर रहे हो
कोई दूसरा काम खोज़ लो
हत्या के पेशे में नहीं है इन दिनों कोई बेरोज़गारी
एक बात जो वह मरने से पहले पूछना चाहता था कवियों से
वह बात बहुत मामूली जैसी थी
जैसे यही कि तुम लोग भई जो कविताएँ आपस में लिखते हो
तो वे कविताएँ ही किया करते हो
या कुछ और उपक्रम करते हो
इस कदर हिंसा तो कवि में पाई नहीं जाती अक्सर ऐसा पुराने इतिहास में लिखा गया है
अपने मरने के पहले वह उस इतिहास को भी पढ़ आया था
जिस इतिहास को भी पिछले कुछ सालों में बड़े सलीके से
नई तकनीक से मारा गया
जहाँ वह दफ़्न है या जहाँ बिखरी है उसकी राख़
वहाँ हवा चलती है तो सुनाई देती है उस हुतात्मा की बारीक़ धूल जैसी महीन आवाज़
वह लगातार पूछता रहता है
क्यों भई ! कोई शै अब ज़िन्दा भी बची है ज़माने में ?
मैं राख़ हूँ फ़कत राख़
मत फ़ूँको
आँख तुम्हारी ही जलेगी