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सच बेहाल मिलेंगे / रविशंकर मिश्र
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फोटोशॉपित तथ्यों के
भ्रमजाल मिलेंगे
आभासी दुनिया में
सच बेहाल मिलेंगे।
जाने किसका धड़ है
सिर जाने किसका
पर्वत दिखे करीने से
खिसका-खिसका
नकली आँसू में
भीगे रूमाल मिलेंगे।
अपनी ढपली और
राग अपने-अपने
चकाचौंध में डूबे हैं
सारे सपने
एक सिरे से भटके
सुर-लय-ताल मिलेंगे।
कबिरा के ढाई आखर
भी झूठ हुए
साखी-सबद-रमैनी
सारे हूट हुए
मंचों पर इठलाते
नरकंकाल मिलेंगे।
मुस्काते श्रीराम
देख यह दृश्य खड़ा
हनूमान ग़ायब
दसकंधर गले पड़ा
नवमारीच धरे
फिर मृग की खाल मिलेंगे।