Last modified on 21 जुलाई 2019, at 13:53

कहाँ गया वह गाँव / संजय पंकज

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पंकज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कहाँ गया वह गाँव?
छोटे-छोटे ताल तलैये
छोटी छोटी नाव?

फूस पात के घर थे तो क्या?
भूत प्रेत के डर थे तो क्या?
आफत में सब मिलजुल करते
विफल किसी के दाँव!

निर्धन भी लोग सयाने थे
सब ही जाने पहचाने थे,
पचपन के कंधे पर बचपन
रखता डगमग पाँव!

छोटे हाथ बड़े कंधों पर
छोटे-छोटे संदर्भों पर,
छोटे-छोटे घर में होते
ऊँचे-ऊँचे भाव!

छल छद्मों के रोग नहीं थे
छोटे ओछे लोग नहीं थे,
नहीं प्रपंची पेड़ वहाँ थे
नहीं छली थी छाँव!

धड़कन धड़कन में रमती थी
दादा-पोते में जमती थी,
सुबह पराँती शाम विरागी
तापे सभी अलाव!