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गीत गाना छोड़ दूँगा / सुनीत बाजपेयी

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आप मेरे होंठ की थिरकन कभी यदि पढ़ न पायीं,
आपकी सौगंध उस दिन गीत गाना छोड़ दूँगा।।

आप क्या जाने कि कितना द्वार दिल का खटखटाया।
और कितनी बार वापस बिन कहे कुछ लौट आया।
देवता-देवी मनाये रात दिन जब एक करके,
तब कहीं जाकर हृदय ने आपका है प्यार पाया।
सुन अगर आवाज मेरी भी नहीं इस ओर आयीं,
तो हमेशा के लिये फिर मैं बुलाना छोड़ दूँगा।

है कठिन लाना गगन से तोड़कर के चाँद तारे।
इसलिये वादे करूँगा ही नहीं मैं ढेर सारे।
पर कभी भी दुःख न दूँगा ये सदा विश्वाश रखना,
क्योंकि मेरी जिन्दगी अब आपके ही है सहारे।
प्रिय कभी मेरी वजह से आपको पीड़ा हुयी तो,
साँस के अंतिम सफर तक मुस्कुराना छोड़ दूँगा।

खूब बचपन में सुना था एक राजा एक रानी।
सोंचते उनके विषय में आ गयी मुझ पर जवानी।
आपको पाया तभी से ले लिया संकल्प मैंने,
प्रेम के इतिहास में अपनी लिखी होगी कहानी।
आपने यदि साथ मेरा छोड़ने का मन बनाया,
ठीक अगले पल ख़ुशी से ये जमाना छोड़ दूँगा।