Last modified on 21 जुलाई 2019, at 21:03

कर्जों की बैसाखी पर / शैलेन्द्र शर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:03, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कर्जों की बैसाखी पर है
दौड़ रही रौनक

'ओवन', 'ए.सी.', 'वाशिंग मशीन'
और 'वैकुअम क्लीनर'
सोफों-पर्दों-कालीनों से
दमके सारा घर

जेबें नहीं टटोलीं अपनी
ऐसी चढ़ी सनक

दो पहिये को धक्का देकर
घुसे चार पहिये
महँगा मोबाइल 'पाकेट' में
'लाकेट' क्या कहिये

किश्तों में जा रहीं पगारें
ऊपर तड़क-भड़क

दूध-दवाई-फल-सब्जी पर
कतर-ब्यौंत चलती
माँ की चश्मे की हसरत भी
रहे हाथ मलती

बात-बात पर घरवाली भी
देती उन्हें झिड़क

'नून-तेल-लकड़ी' का चक्कर
रह-रह सिर पकड़े
फिर भी चौबिस घंटे रहते
वे अकड़े-अकड़े

दूर-दूर तक मुस्कानों की
दिखती नही झलक