भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन आएगा / सोनरूपा विशाल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:48, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोनरूपा विशाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन आएगा।

है मुझको यक़ीं, दिन आएगा । दिन आएगा।
बेख़ौफ़ चुनर लहरायेगी, हर चिड़िया झूम के गायेगी।
हर दुख जब घुटने टेकेगा, हर सुख जब बाज़ी जीतेगा।
जब हर चेहरा मुस्कायेगा, घर घर में उजाला जाएगा।

दिन आएगा।

सब सबको अपना समझेंगे,सबके मन फूल से महकेंगे।
नफरत की अंधेरी राहों से हम नफ़रत कर मुँह फेरेंगे।
कोई न हमें भरमायेगा।

दिन आएगा।

मेहनत से लिखेंगे किस्मत को,पाएंगे तेरी हर नेमत को।
अपना हक़ अपना ही होगा,औरों के लिए सपना होगा।
जिसे छीन कोई ना पायेगा।

दिन आएगा।

हर बचपन में किलकारी हो,सीधे रस्ते पे जवानी हो।
हर बूढ़ी उमर आबाद रहे,सबका जीवन अब शाद रहे।
सपना ये सच हो जाएगा।

दिन आएगा।