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कविता / कुँअर रवीन्द्र

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कविता की भी जाति होती है
धर्म. सम्प्रदाय. वर्ग भी
और
कविता छूत-अछूत भी होती है
 
किस कविता को छुआ जाना है
किस कविता को नहीं
पाठक से पहले
कवि ही तय करता है
इसीलिए आज
कोई भी कविता
कविता नहीं होती
उसकी आयु भी छोटी होती है
वह असमय ही मर जाती है
 
जो कविता
दलित. आदिवासी. वर्ग. जाति. कुंठा आदि-आदि से
ऊपर उठकर लिखी जाती है
वह कविता. कविता होती है
और चिरायु भी