भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरी राह में क़ैदखाने पड़ेंगे / उर्मिलेश
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 22 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> तेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तेरी राह में क़ैदखाने पड़ेंगे
मगर तुझ को ख़तरे उठाने पड़ेंगे
अभी ख़ून से शेर लिखने है तुझको
क़लम हड्डियों के बनाने पड़ेंगे
कहीं सो न जाए सुबह के मुसाफ़िर
तुझे रात भर गीत गाने पड़ेंगे
अगर तू ही चुप हो गया इस सदी में
हमें रोज़ आंसू बहाने पड़ेंगे
यह महफ़िल है इस का तकाज़ा यही है
तुझे दर्द अपने भुलाने पड़ेंगे
तू शायर है,मुफ़लिस है, ख़ुद्दार भी है
तुझे ग़म से रिश्ते निभाने पड़ेंगे
दियों से न मिट पायेगा यह अंधेरा
हमें दिल भी अपने जलाने पड़ेंग