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विरह का गान / महेन्द्र भटनागर

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मिल गया तुमको, तुम्हारा प्यार !

ज़िन्दगी मेरी अमा की रात है,
एक पश्चाताप की ही बात है,
आज मेरा घर हुआ वीरान है,
मूक होठों पर विरह का गान है ;

पर, खुशी है —
मिल गया तुमको मधुर संसार !

भाग्य में मेरे बदा था शून्य-जल
मधु-सुधा भी बन गया तीखा गरल,
पास की पहचान अब कड़ियाँ बनीं,
वेदनामय गत मिलन-घड़ियाँ बनीं,

पर, खुशी है —
मिल गया तुमको नया शृंगार !

ज़िन्दगी में आँधियाँ ही आँधियाँ,
स्नेह बिन कब तक जलेगा यह दिया !
आ रहा बढ़ता भयावह ज्वार है,
हाथ में आकर छिना पतवार है,

पर, खुशी है —
मिल गया तुमको सबल आधार !