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लिखो कुछ और भी / निर्मला गर्ग

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कवि तुम हमेशा दुख और यातना और उदासी और
ऊब ही क्यों लिखते हो
लिखो कुछ और भी…

होठों पर आया वह ज़रा-सा स्मित लिखो
आँखों में चमक रहे ख़ुशी के नन्हे कण लिखो
धूप बहुत तीखी है आज
बिक गए घड़ेवाली के सारे घड़े
घर लौटते हुए उसके पैरों की चाल लिखो

शकुन्तला की साड़ी का रँग चटख है
बाल भी सुथरे जूड़े में बन्धे हुए
चम्पा का एक फूल भी खुसा है वहाँ
तसले में रेत भरते हुए वह गुनगुना रही है
उसका मरद आसाम गया था आज लौट रहा है
लिखो – उसकी यह गुनगुनाहट लिखो ।