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जिन्दगी तो मिल न पाई / ईशान पथिक
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सिर्फ सांसें पास मेरे
जिन्दगी तो मिल न पाई
सूखे पत्तों से भरी हैं
आज यह गलियारियां
क्या कह रही हैं दर्द मेरा
आज यह फुलवारियाँ
धूप उठकर देहरी से
कुछ गमों की गर्द लाई
सिर्फ सांसें पास मेरे
जिन्दगी तो मिल न पाई
खो गई मंजिल है मेरी
फिर भी राही चल रहा हूँ
आंख के आंसू छिपाकर
मैं स्वयं को छल रहा हूँ
डायरी कोई पुरानी
फिर सपन की याद लाई
सिर्फ सांसें पास मेरे
जिन्दगी तो मिल न पाई
सिलवटें सी आ गई है
आज कोरी जिन्दगी पर
शर्म आती है मुझे अब
अपनी ही शर्मिंदगी पर
इंतज़ार अपनों का करते
रूह मेरी हुई पराई
सिर्फ सांसें पास मेरे
जिन्दगी तो मिल न पाई।