भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं था और तन्हाई थी / ईशान पथिक

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:42, 23 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईशान पथिक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक ही घर में साथ रहे थे मैं था और तन्हाई थी
जब भी मुझको दर्द मिले थे मैं था और तन्हाई थी

भीड़ में जब भी घूमा था तो धक्का-मुक्की मार पड़ी
जब भी सारे जख्म सिले थे मैं था और तन्हाई थी

एक जरा सी बात पे देखो उसने मुझको छोड़ दिया
एक में ही पर लाख गिले थेमैं था और तन्हाई थी

अब मैं वीरां दिल को अपने देख के तन्हा होता हूं
बागों में जब फूल खिले थे मैं था और तन्हाई थी
बोलने की तो कोशिश की थीफिर भी हम खामोश रहे
दोनों के लब साथ हिले थे मैं था और तन्हाई थी