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जीवन मंगलदीप हो गया / लव कुमार 'प्रणय'

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जब से प्यार तुम्हारा पाया,
जीवन मंगलदीप हो गया
उगे अधर पर सम्बोधन जब,
यौवन मंगलदीप हो गया

याद तुम्हारी एक धरोहर,
सूनेपन को महकाती है
अलसाई आँखों में आकर,
सारी व्यथा सुना जाती है
नयनों से ऐसे घन बरसे,
सावन मंगलदीप हो गया
जब से प्यार तुम्हारा पाया,
जीवन मंगलदीप हो गया

वशीकरण-सा रूप तुम्हारा,
जग को वश में कर लेता है
मधुवन में कलियों का खिलना,
भँवरों का मन हर लेता है
रोम-रोम महका चन्दन-सा,
तन-मन मंगलदीप हो गया
जब से प्यार तुम्हारा पाया,
जीवन मंगलदीप हो गया

मैं सुन्दर सपनों का द्रष्टा,
तुम जीवन-दर्शन गीता का
मुझ में राम नहीं बस पाया,
तुम में रूप बसा सीता का
परिणय बन्धन में जब बाँधा,
बन्धन मंगलदीप हो गया
जब से प्यार तुम्हारा पाया,
जीवन मंगलदीप हो गया