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इंसाँ के जज़्बात देखना / राजमूर्ति ‘सौरभ’

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इंसाँ के जज़्बात देखना
क्योंकर उसकी ज़ात देखना

आँखों को अच्छा लगताहै
खिड़की से बरसात देखना

मत जाना केवल चेह्रे पर
उसकी इक-इक बात देखना

आँखों में ठहरे हैं बादल
अब इनकी बरसात देखना

नज़र डालना अपने क़द पर
फिर मेरी औक़ात देखना

किस दर्जा दिलक़श होता है
छज्जे से बारात देखना

सब्र न अपना खो देना तुम
जब भी झंझावात देखना

नन्हें जुगनू का सपना है
अँधियारे की मात देखना

नगर भूल जाओगे अपना
आकर तुम देहात देखना

कल सबके होठों पर होंगे
'सौरभ' के नग़मात,देखना