भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह न समझो / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:43, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर }} य...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह न समझो कूल मुझको मिल गया
आज भी जीवन-सरित मझधार में हूँ !

प्यार मुझको धार से
धार के हर वार से,
प्यार है बजते हुए
हर लहर के तार से,

यह न समझो घर सुरक्षित मिल गया
आज भी उघरे हुए संसार में हूँ !

प्यार भूले गान से,
प्यार हत अरमान से,
ज़िन्दगी में हर क़दम
हर नये तूफ़ान से,

यह न समझो इंद्र-उपवन मिल गया
आज भी वीरान में, पतझार में हूँ !

खोजता हूँ नव-किरन
रुपहला जगमग गगन,
चाहता हूँ देखना
एक प्यारा-सा सपन,

यह न समझो चांद मुझको मिल गया
आज भी चारों तरफ़ अँधियार में हूँ !