भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मृत्यु के साथ जीना / सुभाष राय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:02, 26 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष राय |अनुवादक= |संग्रह=सलीब प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जीवन के भीतर ही रहती है मृत्यु
उल्लास में, वेदना में, द्वेष और छद्म में
घर के किसी कोने में, चीनी या नमक मे
दिल की धड़कनों में घोंसला बना सकती है मृत्यु
मैनहोल के मुहाने पर बैठी हो सकती है
किसी कमज़ोर पेड़ के तने में
पहाड़ों, नदियों और फूलों में भी हो सकती है
मृत्यु के बग़ैर जीना सम्भव नहीं
जीने के लिए मरने की तैयारी बहुत ज़रूरी है