भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुबह होगी क़रीब / सुभाष राय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:12, 26 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष राय |अनुवादक= |संग्रह=सलीब प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अन्धेरा बहुत गहरा हो
तो समझना सुबह क़रीब है
दुख जब भी आए, घबराना नही
सुख पास ही खड़ा होगा कहीं
चलते रहो तब भी जब रास्ता न सूझे
अन्धेरा ही फूटेगा बनकर उजास
मँज़िल चलकर आएगी तुम्हारे पास